आज इस धड़कते हुए, भीगे हुए पल में बस यही कह सकते हैं, 'हमने लता को देखा है'

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आज इस धड़कते हुए, भीगे हुए पल में बस यही कह सकते हैं, 'हमने लता को देखा है'
Feb 7th 2022, 07:03

-यूनुस खान, रेडियो उद्‌घोषक एवं संगीत इतिहासकार फिराक का शेर है- 'आने वाली नस्लें तुम पर फ़ख़्र करेंगी हम-असरो/ जब भी उन को ध्यान आएगा तुम ने 'फ़िराक़' को देखा है'। ये शेर आज इस धड़कते हुए, भीगे हुए पल में मुझे लता जी के संदर्भ में मौजूं लग रहा है। मुझे याद है कि मुंबई में बहुत नया-नया आया था। संभवत: 1997 की बात है। उन दिनों में अंधेरी के स्‍पोर्ट्स कॉम्‍पलेक्‍स में लता जी का कॉन्‍सर्ट हो रहा था। जोरदार विज्ञापन थे। एक दिन मैंने भी टिकिट खरीद ही लिया और कॉन्‍सर्ट का दिन आने तक मैं उसे अपने तकिए के नीचे रखकर सोता रहा। आखिर वह दिन आया जब लता जी को लाइव कॉन्‍सर्ट में सुनना था। खचाखच स्‍टेडियम में कोल्‍हापुर से आए एक वृद्ध युगल को लता जी के हर गीत पर रोते हुए देखा। न जाने कितनी आंखें उस दिन चमकती रहीं। पता नहीं था कि जीवन ऐसा सौभाग्‍य देगा कि लता जी से कई बार बातें करने और उनसे मिलने का भी मौका मिलेगा। जब पहली बार मैंने उन्‍हें फोन लगाया तो एक मशहूर संगीतकार के निधन पर उनसे अपनी यादें साझा करने को कहना था। पसीने से तर-ब-तर मैं धड़कते दिल से डायल कर रहा था। ये इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया से पहले के दिन थे। उधर से लता जी फोन पर आईं और इधर मेरे हाथ से फोन गिरते-गिरते बचा। बहरहाल उन्‍होंने बहुत ही सहृदयता से मेरे हर सवाल का जवाब दिया और न जाने कितनी यादें शेयर कीं। उसके बाद एक बहुत ही दिलचस्‍प याद है उनसे बातचीत की। हिम्‍मत करके मैंने एक बार फोन किया और कहा कि उनसे बहुत कुछ पूछना चाहता हूं। उन्‍होंने कहा कि गाने के सिवा बात करें तो ठीक रहेगा। मेरे जेहन पर एक विशाल शून्‍य हावी हो गया। पर फौरन ही खुद को संभालकर पहला सवाल फोटोग्राफी से जुड़ा पूछा। शायद किस्‍मत और समय मेहरबान था कि सवाल लता जी के मन का था। उन्‍होंने विस्‍तार से बताया कि किस तरह उन्‍होंने अपना पहला कैमरा खरीदा था और खूब फोटोग्राफी की। रील वाले कैमेरे को लेकर उनकी ललक मैंने महसूस की। उन्‍होंने एक दिलचस्‍प घटना भी बताई कि किस तरह शिवाजी के एक किले पर तस्‍वीरें लेते हुए कैमरा उनके हाथ से छूटा और नीचे घाटी में गिर गया। बहुत समय बाद एक किसान को वह कैमरा मिला तो वह उन्‍हें वापस लौटाने आया। तब वह कैमरा किसी काम का नहीं बचा था। लता जी को डिजिटल फोटोग्राफी खास पसंद नहीं थी। उन्‍हें लगता रहा कि असली मजा तो रील वाले कैमेरों में था। मैंने एक बार लता जी से क्रिकेट के उनके शौक के बारे में पूछा था। तब उन्‍होंने बताया था कि क्रिकेट की ललक का आलम ये था कि वह रेडियो पर कमेन्‍ट्री सुना करती थीं। उन्‍होंने बताया कि भारत-इंग्‍लैंड और भारत-वेस्टइंडीज के मुकाबलों पर उनकी नजर रहा करती थी। सचिन उनके फेवरेट क्रिकेटर हैं, ये भी बताया। मुझे यह जानकर हैरत हुई कि लता जी क्रिकेट को न सिर्फ फॉलो करती रहीं, बल्कि उन्‍हें क्रिकेट के बारे में बातें करने में मजा बहुत आता था। उन्‍होंने बताया कि टेस्‍ट क्रिकेट ही उन्‍हें असली क्रिकेट लगता रहा है। लता जी से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। गायकी को अपनाते हुए भी उन्‍होंने अपने तमाम शौक कायम रखे। लता जी रेडियो को याद करते हुए बताती थीं कि उन्‍होंने पैसे जोड़कर अपना पहला रेडियो खरीदा था और जब उस रेडियो पर उस दौर के स्‍टार गायक कुंदन लाल सहगल की मौत का समाचार सुना तो उसे उठाकर रख दिया था। उन्‍होंने बताया कि एक जमाने में वे रेडियो के कार्यक्रमों के लिए फरमाईशी पोस्‍ट कार्ड भेजा करती थीं। लता जी ने बहुत पहले ही समझ लिया था कि गायकी में सही उच्‍चारण बहुत मायने रखता है। इसलिए उन्‍होंने बाकायदा एक मौलवी से उर्दू की तालीम ली। इसीलिए उनकी हिंदी फिल्‍मी गायकी हो या फिर पंजाबी, बांग्‍ला या अन्‍य भाषाओं में गायकी- उन्‍होंने हर भाषा के उच्‍चारण को बखूबी निभाया। मुझे याद है कि जानी-मानी डोगरी कवयित्री पद्मा सचदेव कितने उल्लास से बताया करती थीं कि किस तरह उन्‍होंने लता जी को डोगरी गाने गाने के लिए राजी किया था और इस तरह एक रिकॉर्ड आया, जिसमें 'तू मल्‍लां तू' और 'भला सिपाहिया डोगरिया' जैसे प्‍यारे गाने थे। इसी तरह जब आप लता जी के बांग्‍ला गाने सुनें तो यकीन करना मुश्किल होता है कि ये किसी बांग्‍ला भाषी गायिका ने नहीं गाए हैं। मजरूह सुल्‍तानपुरी और पाकिस्तान के इंकलाबी शायर हबीब जालिब पर खूबसूरत नज्में लिखी हैं। मुझे वो दिन याद आता है जब प्रभुकुंज में लता जी से मिलने का मुझे सौभाग्‍य मिला, मेरे हाथ-पैर कैसे कांप रहे थे। पर वो सबको सहज कर लेती थीं। वे अपने गानों की शक्‍ल में हमेशा संग रहेंगी।

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